Monday 4 May 2020

बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने “देशाचे दुश्मन (देश के दुश्मन)”के लेखक दिनकरराव जवळकर को निर्दोष साबित कर उन्हें जेल से छुड़ाया.


बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रख्यात ग़ैर-ब्राह्मण नेता और बुद्धिजीवी दिनकरराव जवळकर को ब्राह्मणों ने षड्यंत्र करके जब पुणे अदालत से उन्हें उनकी किताब “देशाचे दुश्मन” लिखने के लिए 15 सितम्बर 1926 को सजा दिलवाई, तो बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर ने पुणे जाकर उनका केस लड़ा. बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर की दलीलों को मानते हुए पुणे के सेशन्स जज ने 18 अक्टूबर 1926 को दिनकरराव जवळकरऔर उनके अन्य साथियों को निर्दोष मानते हुए उन्हें बाइज्ज़त बरी कर दिया.

दिनकरराव जवलकर द्वारा देशाचे दुश्मन नाम की इस किताब को लिखने के पीछे भी एक कारण था. पुणे में महात्मा ज्योतिराव फूले और उनके आंदोलन सत्यशोधक समाज का ग़ैर-ब्राह्मण जातियों में बड़ा ही प्रसार हो रहा था. उनकी विचारधारा और आंदोलन का विरोध प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के अनुयायी विष्णुशास्त्री चिपलूनकर के नेतृत्व में ब्राह्मण समाज कर रहा था. विष्णुशास्त्री चिपलूनकर ने महात्मा जोतिराव फूले के विचारों और काम की खिल्ली उड़ाया करते थे, जो गैर-ब्राहमण समाज के दिनकरराव जवळकर को बर्दाश्त नहीं था.

सन 1925 में जब पुणे नगरपालिका ने पुणे में महात्मा जोतिराव फूले की मूर्ति स्थापना का प्रस्ताव किया तो तिलकवादी ब्राह्मणों ने महात्मा जोतिराव फूले की मूर्ति लगाने विरोध किया. वह महात्मा जोतिराव के लेखन और सामाजिक काम को ब्राहमणों के खिलाफ मानते थे. ब्राह्मणों के इस विरोध के चलते सम्पूर्ण तात्कालिक बॉम्बे प्रान्त (अब महाराष्ट्र) में सनसनी फैल गई.

ऐसे में नौजवान दिनकरराव जवळकर ने इन दक़ियानूसी ब्राह्मणों को जवाब देने का फैसला किया. उन्होंने इसके लिए मराठी में “देशाचे दुश्मन (देश के दुश्मन) नाम की किताब लिखी. इस किताब में उन्होंने बाल गंगाधर तिलक और विष्णुशास्त्री चिपलूनकर की हरेक बात का तार्किक जवाब दिया. एक ग़ैर-ब्राह्मण द्वारा लिखी गई इस पुस्तक से खुद को सर्वश्रेष्ठ मानने वाले पुणे के ब्राह्मणों में खलबली मच गई. उन्होंने इसे अपना अपमान माना. उन्होंने दिनकरराव जवळकर को सबक सिखाने का फैसला कर लिया.

ब्राह्मणों ने ‘देशाचे दुश्मन” किताब को ब्राहमणों और धर्म का अपमान बताते हुए इसके ख़िलाफ़ पुणे के जिलाधिकारी से शिकायत की. जिलाधिकारी ने दिनकरराव जवळकर और उनके साथियों के खिलाफ मुक़दमा दायर करने न्यायलय में पेश होने का आदेश दिया. इसपर ब्राह्मण वक़ील एल बी भोपटकर ने पुणे के अदालत में दिनकरराव जवळकर और अन्य लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया. इस मुक़दमे की अच्छी पैरवी ना होने की वजह से पुणे के कोर्ट ने दिनकरराव जवळकर और उनके साथियों को सजा सुनाई.

जब यह बात युवा और तेज़तर्रार बैरिस्टर बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर के पास पहुँची, तो उन्हें सारी बात समझ आ गई. उन्होंने पुणे के सेशन्सजज के सामने अपील की और मुक़दमा लड़ा. बैरिस्टर डॉक्टर अम्बेडकर के तर्कों और विद्वता के सामने सनातनी भोपटकर पस्त हो गया. जज ने मुक़दमे का फ़ैसला डॉक्टर अम्बेडकर के पक्ष में सुनाया और 18 अक्टूबर 1926 को सेशन्स जज ने ग़ैर-ब्राह्मण नेता दिनकरराव जवळकर और उनके साथियों को निर्दोष पाया और उन्हें रिहा कर दिया.

दिनकरराव जवळकर का जन्म 1898 में हुआ और 3 मई 1932 में 34 साल की उम्र में ही
उनका परिनिर्वाण हो गया. दिनकरराव जवळकर को उनके 88वें परिनिर्वाण दिवस पर
हमारी कोटि-कोटि श्रद्धांजलि.




2 comments:

  1. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर के जीवन से जुड़ी जानकारी एक ही स्थान पर प्राप्त करना/कराना सराहनीय है। बधाई
    *सुनीता राजेश्वर (अध्यक्ष-परिणय)
    जाति तोड़ो-भारत जोड़ो
    🇮🇳जयहिंद जयभारत🇮🇳

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