Some curated quotes from Annihilation of Caste by Dr. B. R. Ambedkar
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Friday, 8 May 2020
Ambedkar Classic, Annihilation of Caste
Some curated quotes from Annihilation of Caste by Dr. B. R. Ambedkar
Thursday, 7 May 2020
बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष | डॉक्टर अम्बेडकर की धर्मांतरण यात्रा
डॉक्टर अम्बेडकर की धर्मांतरण यात्रा: कब क्या कहा.
1 मई 1936, सेवाग्राम वर्धा: मैं किसी भी व्यक्ति को इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करता. यदि कोई व्यक्ति अपनी मर्ज़ी से ऐसा करता है, तो वह धोखा देता है, जिसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं.
28 अगस्त 1937, बॉम्बे: हमें तमाम धार्मिक त्यौहार और दिनों को मनाना बन्द कर देना चाहिए, जिन्हें हम धर्म के अनुसार मनाते चले आ रहे हैं.
1 जनवरी 1938, सोलापुर: ईसाई और उनके धर्मावलम्बी दक्षिण भारत में चर्चों में जाति व्यवस्था मानते हैं. भारतीय ईसाईयों ने, एक समुदाय के तौर पर, कभी भी सामाजिक अन्याय को हटाने के लिए संघर्ष नहीं किया.
2 मई, 1950, नई दिल्ली: मेरा मानता हूँ कि मानवजाति के लिए धर्म की आवश्यकता है. जब धर्म समाप्त हो जाता है, तो समाज का भी नाश हो जाता है.
26 मई 1950, श्री लंका: मैं भारत के उन लोगों में से हूँ जो यह सोचते हैं कि भारत में बुद्धिज़्म को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए. बौद्ध देशों को केवल धार्मिक अध्ययन वृतियां नहीं देना चाहिए, अपितु उन्हें (बौद्ध धर्म के प्रसार) के लिए त्याग और प्रोत्साहित करना त्याग चाहिए.
6 जून 1950, श्री लंका: भारत ने बौद्ध धर्मं का उभार उतना ही महत्वपूर्ण है, जितनी फ़्रांसिसी क्रांति. बौद्ध मत के पहले यह सोचना भी असंभव था कि किसी शूद्र को राजसत्ता मिल जाएगी. भारत का इतिहास बताता है कि बौद्ध धर्म के विस्तार के बाद शूद्रों को राजसत्ता मिलने लगी. बौद्ध धर्म ने भारत में लोकतंत्र और समाजवादी संरचना की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया.
29 सितम्बर, 1950, वोर्ली, महाराष्ट्र: जब तक मानस पवित्र नहीं है, तब तक नैतिकता को छोड़ दैनिक जीवन में व्यक्ति गलत काम करता रहेगा. जब तक व्यक्ति को यह मालूम नहीं कि व्यक्ति को व्यक्ति के साथ क्या बर्ताव करना चाहिए, तब तक व्यक्ति और व्यक्ति के बीच में दीवारें बनती रहेंगी. भारत में इन सभी परेशानियों को समाप्त करने के लिए भारत को बौद्ध धर्म अपनाना चाहिए.
14 जनवरी, 1951, बोम्बे: बौद्ध धर्म फिर इस देश का धर्म बनेगा. बौद्ध धर्म के बारे में सोचिये, इसका परीक्षण कीजिये, अध्ययन कीजिये और तब स्वीकार कीजिये. आपको पता चलेगा कि बौद्ध धर्म सबसे महान धर्म है और जीने का वैज्ञानिक तरीका है.
15 फरवरी 1953, नई दिल्ली: गौतम बुद्ध ने कहा था, कोई भी व्यक्ति आत्मा के अस्तित्व की प्रमाणित नहीं कर सकता. मैं लगाव व्यक्ति से है. मैं व्यक्ति और व्यक्ति के बीच सही (धार्मिक) संबंधों की स्थापना करना चाहता हूँ.
24 जनवरी 1954, बॉम्बे: बुद्ध ने पंचशील, अष्टांगिक मार्ग और निब्बना का नैतिक सूत्र दिया. उन्होंने दस गुण या पारिमिताएं बताईं. दान भी एक पारिमिता है. दान देने वाला दान लेने वाले को नीची नज़र से न देखे. धर्म के नाम पर दान इकठ्ठा करना और उसका दुरुपयोग करना अपराध है.
4 दिसंबर 1954, बर्मा: इस बात को समझने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि बौद्ध धर्म के शुरुआती दिनों में इसमें शामिल होने वाले बहुतायत लोगों में निचली जातियों के लोग होंगें. बौद्ध धर्म की सासन परिषद् को ईसाई धर्म वाली गलतियाँ नहीं करनी चाहियें. ईसाईयों ने पहले अपने धर्म में ब्राहमणों को ईसाई बनाया.
12 मई 1956, बीबीसी: मैं बौद्ध धर्म को इसलिए पसंद करता हूँ क्योंकि यह हमें तीन सिद्धांत देता है. यह सिद्धांत हैं: अन्धविश्वास और आस्तिकता में विश्वास के खिलाफ प्रज्ञा; करुणा; और समता. येही वह चीजें हैं जो व्यक्ति को जीवन एक अच्छे और सुखी जीवन के लिए चाहियें.
24 मई 1956, बॉम्बे: बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म में अंतर है. हिन्दू धर्म में भगवान है; बौद्ध धर्म में भगवान् नहीं है. हिन्दू धर्म आत्मा में विश्वास करता है; बौद्ध धर्म के अनुसार आत्मा नहीं है. हिन्दू धर्म चातुवर्ण और जातियों में विशवास करता है; बौद्ध धर्म में जाति-व्यवस्था या चातुवर्ण के लिए कोई जगह नहीं है.
14–15 अक्तूबर, 1956, नागपुर: 1935 में येवला सम्मलेन में पारित प्रस्ताव के साथ ही मैंने हिन्दू धर्म छोड़ने का अभियान शुरू किया था. मैंने बहुत पहले कसम ली थी कि यद्यपि मैं एक हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूँ, लेकिन मैं हिन्दू के रूप में मरूँगा नहीं. मैंने अपनी बात को साबित कर दिया है. मैं बहुत खुश हूँ. मुझे नरक से मुक्ति मिल गई है. मुझे अंधविश्वासी अनुयायी नहीं चाहियें. जो बौद्ध धर्म को स्वीकार करना चाहते हैं, वह इसे समझ कर ही स्वीकार करें.
Wednesday, 6 May 2020
डॉ. भीमराव अम्बेडकर आपके ही नहीं, देश के भी अच्छे नेता साबित होंगे. -शाहूजी महाराज
आज ही के दिन, 6 मई 1922 को इस महापुरुष छत्रपति शाहू जी महाराज का परिनिर्वाण हुआ. अम्बेडकर ऑनलाइन इन्हें कोटि-कोटि नमन करता है.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर आपके ही नहीं, देश के भी अच्छे नेता साबित होंगे. -शाहूजी महाराज
17 सितम्बर 1919 को छत्रपति शाहू जी महाराज ने डॉ अम्बेडकर से उनके घर, डबक चाल, बॉम्बे में मुलाकात की. उन्होंने डॉ अम्बेडकर को उनका अख़बार मूकनायक चालू करने के लिए 2500/- रुपये दिए. यह राशि आज के हिसाब से लगभग 75 लाख रुपये से अधिक होती है.
छत्रपति शाहू जी महाराज ने डॉ अम्बेडकर को कोल्हापुर में शाही मेहमान के तौर पर आमंत्रित किया. वहां डॉ अम्बेडकर को शाही पगड़ी पहना कर सम्मानित किया. कोल्हापुर में डॉ अम्बेडकर की शोभायात्रा निकाली गई.
कोल्हापुर के माणगाँव (कागल) में दो दिवसीय बहिष्कृत वर्ग सम्मलेन का आयोजन किया गया. इस सम्मलेन का आयोजन 21 – 22 मार्च 1920 को किया गया. छत्रपति शाहू जी महाराज इस परिषद् के मुख्य अतिथि थे. इस सम्मलेन के अध्यक्ष बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर थे. सम्मलेन के स्वागत अध्यक्ष दादा साहेब मोकाशी थे. इस सम्मलेन से ही बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर के सामाजिक-राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई.
इस सम्मलेन में डॉ अम्बेडकर ने छत्रपति शाहूजी महाराज के नेतृत्व की खुले दिल से प्रशंसा की. डॉ अम्बेडकर ने महाराज द्वारा अश्पृश्य समाज के उत्थान के लिए किये उनका धन्यवाद् किया. डॉ अम्बेडकर ने रियासत में गैर-ब्राह्मणों को आरक्षण देने के महाराज के निर्णय का स्वागत किया. बहिष्कृत वर्ग सम्मेलन में मुख्यातिथि के रूप में आशीर्वाद देने के लिए डॉ अम्बेडकर ने अश्पृश्य समाज की ओर से छत्रपति शाहूजी महाराज का आभार किया.
छत्रपति शाहूजी महाराज ने बहिष्कृत वर्ग सम्म्लेन को संबोधित करते हुए समाज में अश्पृश्य समाज की स्थिति का वर्णन किया. उन्होंने कहा की अश्पृश्य समाज के साथ अत्याचार होता है. उनसे बेगारी कराई जाती है. माता-पिता बेगारी में होने के कारण, घर में बच्चों के स्वस्थ्य पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है. उन्हें पढने नहीं दिया जाता है, उनसे वतनदारी (एक तरह की बेगारी) कराई जाती है.
छत्रपति शाहूजी महाराज ने बताया कि उन्होंने अपनी रियासत में वतनदारी बन्द कराई. अश्पृश्य समाज को जमीन के पट्टे दिए. गैर-ब्राहमणों को शासकीय सेवाओं में भर्ती किया. शाहूजी महाराज ने डॉ अम्बेडकर से उनकी उनके काम में सहायता करने की अपील की. सम्म्लेन में शाहूजी महाराज ने उम्मीद जताई कि पिछड़ों के नेता केशवराव और बाबू कालीचरण को भी डॉ अम्बेडकर के साथ सम्मलेन में हिस्सा लेना चाहिए था.
सम्मलेन में छत्रपति शाहूजी महाराज ने कहा,
“मैं आपको मिस्टर अम्बेडकर के बारे में बताना चाहता हूँ कि उन्हें अछूत कहा जाता है, जो मुझे पसंद नहीं है. कारण यह है कि महार, मांग, चमार, ढोर, यह दरअसल व्यापारी जाति के लोग हैं. पहले यह व्यापर करते थे. मैं सब लोगों से प्रार्थना करता हूँ कि इस अवस्था में पहुँचने का कारण यह है कि हम अपना योग्य नेता नहीं ढूंढ पाए हैं. जो आपको शूद्र कहते हैं, अछूत कहते हैं, आपके छू जाने पर अपनी शुद्धि कराते हैं, ऐसा नेता हमारे किस काम का?
मैं अम्बेडकर के उदारमतों की प्रशंसा करता हूँ. वे विद्वानों में भूषन हैं. आज आपने अपना नेता ढूंढ लिया है. वे आपका उद्धार किये बिना नहीं रहेंगे. वह आपके ही नहीं, वो देश के एक अच्छे नेता साबित होंगें. अंत में मैं मिस्टर अम्बेडकर से निवेदन करता हूँ कि यहाँ से जाने से पहले वह मेरे रजपूतवाड़ी कैम्प में मेरे साथ भोजन करने के लिए अवश्य आयेंगे.”
आज ही के दिन, 6 मई 1922 को इस महापुरुष छत्रपति शाहू जी महाराज का परिनिर्वाण हुआ. अम्बेडकर ऑनलाइन इन्हें कोटि-कोटि नमन करता है.
छत्रपति शाहूजी महाराज के 98वें परिनिर्वाण के अवसर पर अम्बेडकर ऑनलाइन ने उनके और डॉक्टर अम्बेडकर के बीच के ख़ास सम्बन्धों पर एक विडीओ बनाया है. जो हम, आज रात को ही अम्बेडकर ऑनलाइन ब्लॉग पर पोस्ट करेंगे. उम्मीद है कि आप इसे अवश्य देखेंगे और हमारा हौसला बढ़ाएँगे.
Tuesday, 5 May 2020
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